Gyanvapi masjid, ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास और हिंदू परमार

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का इतिहास (History of Gyanvapi Masjid Controversy): इतिहासकारों का मानना है कि 1194 में मुहम्मद गौरी काशी स्थि‍त मंदिर को लूटकर तुड़वा दिया था। फिर से जब मंदिर बना लिया गया तो 1447 में जौनपुर के शर्की सुल्तान महमूद शाह द्वारा मंदिर को तुड़वा कर मस्जिद बनवाई गई। हालांकि इसको लेकर मतभेद है कि तब मस्जिद नहीं बनी थी। क्योंकि कुछ का मानना है कि 1669 में औरंगजेब के आदेश से तोड़कर यहां पर मंदिर के आधे हिस्से पर जामा मस्जिद बनाई गई। हालांकि मस्जिद को अलग से बनवाकर मंदिर की नींव और मलबे का ही इसमें उपयोग किया गया था।
मंदिर टूटने और मस्जिद बनने के 125 साल तक कोई मंदिर नहीं बना था। इसके बाद साल 1735 में इंदौर की महारानी देवी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के पास काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया। ज्ञानवापी मस्जिद का पहला जिक्र 1883-84 के राजस्व दस्तावेजों में जामा मस्जिद ज्ञानवापी के तौर पर दर्ज किया गया।
1809 में हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद को उन्हें सौंपने की मांग की। 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मिस्टर वाटसन ने 'वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल' को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था, लेकिन यह कभी संभव नहीं हो पाया। 1936 में दायर एक मुकदमे पर वर्ष 1937 के फैसले में ज्ञानवापी को मस्जिद के तौर पर स्वीकार किया गया। 1984 में विश्व हिन्दू परिषद् ने कुछ राष्ट्रवादी संगठनों के साथ मिलकर ज्ञानवापी मस्जिद के स्थान पर मंदिर बनाने के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी अभियान चलाया। 1991 में हिन्दू पक्ष की ओर से हरिहर पांडेय, सोमनाथ व्यास और प्रोफेसर रामरंग शर्मा ने मस्जिद और संपूर्ण परिसर में सर्वेक्षण और उपासना के लिए अदालत में एक याचिका दायर की। मस्जिद सर्वेक्षण के लिए के लिए दायर की गईं याचिका के बाद संसद ने उपासना स्थल कानून बनाया। तब आदेश दिया कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे में नहीं बदला जा सकता।
फिर 1993 में विवाद के चलते इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्टे लगाकर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश की वैधता छह माह के लिए बताई। 2019 में वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले में सुनवाई शुरू हुई। 2021 में फास्ट ट्रैक कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के पुरातात्विक सर्वेक्षण की मंजूरी दी। 2022 में कोर्ट के आदेश के अनुसार ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे का काम पूरा हुआ। शिव मंदिर होने के दावे पर क्या कहते हैं प्राचीन ग्रंथ (What do ancient texts say on the claim of being a Kashi Shiva temple) : हिन्दू पुराणों अनुसार काशी में विशालकाय मंदिर में आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर शिवलिंग स्थापित है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में पुन: जीर्णोद्धार करवाया था।
शिव पुराण और लिंगपुराण में 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में उल्लेख मिलता है जिसमें काशी का ज्योतिर्लिंग प्रमुख माना गया है। भगवान शिव के त्रिशुल की नोक पर बसी है शिव की नगरी काशी। भगवान शंकर को यह गद्दी अत्यन्त प्रिय है इसीलिए उन्होंने इसे अपनी राजधानी एवं अपना नाम काशीनाथ रखा है। विष्णु ने अपने चिन्तन से यहां एक पुष्कर्णी का निर्माण किया और लगभग पचास हजार वर्षों तक वे यहां घोर तपस्या करते रहे। पतित पावनी भागीरथी गंगा के तट पर धनुषाकारी बसी हुई है जो पाप-नाशिनी है। कथित मस्जिद और नए विश्वनाथ मंदिर के बीच 10 फीट गहरा कुआं है, जिसे ज्ञानवापी कहा जाता है। इसी कुएं के नाम पर मस्जिद का नाम पड़ा। स्कंद पुराण में कहा गया है कि भगवान शिव ने स्वयं लिंगाभिषेक के लिए अपने त्रिशूल से ये कुआं बनाया था। कहत हैं कि कुएं का जल बहुत ही पवित्र है जिसे पीकर व्यक्ति ज्ञान को प्राप्त हो जाता है। ज्ञान यानी बोध होना और वापी यानी जल। यह भी कहते हैं कि शिवजी ने यहीं अपनी पत्नी पार्वती को ज्ञान दिया था, इसलिए इस जगह का नाम ज्ञानवापी या ज्ञान का कुआं पड़ा। ज्ञानवापी का जल श्री काशी विश्वनाथ पर चढ़ाया जाता था।

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